संवाददाता द्वारा
रांची, झारखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डा. रवि रंजन व जस्टिस एसएन प्रसाद की खंडपीठ ने रिम्स की लचर व्यवस्था पर नाराजगी जताते हुए उनकी कार्यशैली पर कड़ी टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि कोर्ट के बार-बार आदेश देने के बाद भी रिम्स प्रशासन सुधरने का नाम नहीं ले रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि रिम्स की पूरी व्यवस्था ध्वस्त हो गई है। प्रबंधन को अब स्वयं को बदलने की इच्छाशक्ति नहीं है। अगर रिम्स की व्यवस्था नहीं सुधर सकती है, तो सरकार इसको बंद क्यों नहीं कर देती। अदालत ने रिम्स में सिरिंज, रुई, ग्लव्स, एक्स रे प्लेट, सिटी स्कैन मशीन की फिल्म सहित अन्य मेडिकल उपकरण नहीं खरीदे जाने पर भी नाराजगी जताई। अदालत ने कहा कि कोरोना काल में काफी प्रयास के बाद कई महंगी मशीनें मंगाई गई, लेकिन कुछ दिनों तक चलने के बाद उससे जांच भी बंद कर दी। कई जांच मशीनों पर बारिश का पानी टपक रहा है। ऐसी स्थिति को कोर्ट कतई बर्दाश्त नहीं करेगी। इतने खराब हालात पर कोर्ट अपनी आंखें बंद नहीं कर सकता है। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 3 सितंबर को निर्धारित की है।
सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि राज्य की आम जनता को कम कीमत पर इलाज होना चाहिए। लेकिन यहां की पैथोलाजी की मशीनें हमेशा खराब ही रहती हैं। ऐसे में गरीब जनता को बाहर के पैथलाजी से जांच करानी पड़ती है। जहां पर उन्हें ज्यादा पैसे चुकाने पड़ते हैं। अगर मशीनें काम करती तो उन्हें काफी कम कीमत पर जांच की सुविधा मिल जाती। इसको लेकर रिम्स प्रशासन गंभीर नजर नहीं आ रहा है। इस दौरान अदालत ने रिम्स के अधिवक्ता से पूछा कि रिम्स के चिकित्सकों को निजी प्रैक्टिस करने की इजाजत कैसे दी गई है।
सुनवाई के दौरान अदालत ने स्पष्ट किया कि रिम्स में किसी पद पर आउटसोर्सिंग के जरिए नियुक्ति किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। पूर्व में कोर्ट ने इसको लेकर निर्देश दिया था। लेकिन अभी तक नियुक्ति नहीं की गई है। अदालत ने कहा कि रिम्स एक स्वायतशासी संस्था है। ऐसे में जब उनकी गवर्निंग बाडी (जीबी) नियुक्ति के संबंध में निर्णय लिया है तो उसे राज्य सरकार को क्यों भेजा जाता है। सिर्फ फंड से संबंधित मामले को ही सरकार के पास भेजना चाहिए। बाकी अन्य मामलों में जब जीबी की बैठक में निर्णय लिया गया है, तो एक स्वायतशासी संस्था होने के नाते उसका पालन करना चाहिए। इस तरह के मामले को सरकार को भेजने पर बेवजह देरी होती है। अदालत ने रिम्स निदेशक के कोर्ट में उपस्थित नहीं होने पर नाराजगी जताते हुए कहा कि जब रिम्स निदेशक के खिलाफ अवमानना का मामला चल रहा है तो उन्हें स्वयं कोर्ट में आना चाहिए था। उनकी जगह रिम्स के प्रभारी निदेशक क्यों कोर्ट आए, जब उन्हें कोई जानकारी ही नहीं है।